Friday, September 26, 2008

मां की तनख्वाह!!!!!!!


वो अनाथालय मुझे हमेशा पूजा घर जैसा लगा। हालांकि मैं जब भी स्नेह छाया जाती मेरी आत्मिक संतुष्टि का स्वार्थ मेरे साथ जुड़ा होता। लेकिन बाहर आकर मैं खुद को बहुत बड़ी लगने लगती जैसे मैंने कईयों पर अहसान कर दिया कुछ किताबें, खाने की वस्तुएं और कपड़े देकर। फिर इन निम्न कोटि के ख्यालों का ध्यान आते ही मुझे खुद की इस सोच पर अपने आप को धिक्कारने का मन करता, और मैं बड़े लिहाज के साथ खुद को धिक्कारती। इंसान खुद को कहां दूसरों की तरह धिक्कार पाता है।
हर बार की तरह इस बार भी रोहित मुझे देखकर तेज चहका.... दीदी की हांक लगाता हुआ दौड़ा चला आया और मुझसे चिपट गया। उसका मुझसे यूं लिपटना जैसे मेरे अंदर ममता के स्रोते जगा देता और मुझमें जैसे एक अजीब से भाव का संचार होने लगता जो दूसरे सभी भावों पर हावी होता। मैं सारी दुनिया से कटकर सिर्फ एक मां रह जाती, खासकर रोहित की मां। उस छह साल के बच्चे की मां, जो किसी बाढ़ में अपना परिवार खोकर अब किसी अपने की तलाश की कोई इच्छा बाकी नहीं रखता। शायद मेरा इंतजार भी वो कभी नहीं करता, लेकिन मुझे देखकर खुश जरूर होता था।
कई बार उसके बारे में सोचती तो लगता कि जैसे उससे मेरा कोई पुराना नाता है। जिस दिन अनाथालय जाती शायद उसी दिन रोहित मेरे और मैं रोहित के साथ खुश रहती, इसके अलावा हमारा कोई संबंध नहीं रहता। मेरे आने के बाद मुझे उसकी ऐसी कोई याद नहीं आती,जिसका उल्लेख किया जाए। ना ही उसकी बातों से कभी लगा कि वो मुझे याद करता है। आश्चर्य होता कि ये कैसा रिश्ता है जब मिलते हैं तो एक दूसरे को छोड़ने का मन ही नहीं करता और जब छोड़ देते हैं तो मिलने का मन नहीं करता।
- दीदी, इस बार कुछ मोटी लग रही हो तुम।
- सच.... ओहो रोहित अब फिर कम खाना पड़ेगा।
- क्यों दीदी... क्यों खाने में कटौती करती हो, सब कहते हैं भगवान सबको चोंच देता है तो दाना भी देता है फिर मोटा होना तो अच्छा है ना।
- अरे...फिर तू ही अगली बार कहेगा कि दीदी मोटी हो गई हो अच्छी नहीं लग रही।
- नहीं दीदी... मुझे तुम हमेशा अच्छी लगती हो।

रोहित मुझसे चिपट गया। मैंने उसके बालों में हाथ फेरा....

- रोहित, शैम्पू खत्म हो गया क्या। बाल चिपके चिपके लग रहे हैं...
- हां दीदी, काफी दिन हो गए।
- अरे तो मुझे बताया क्यों नहीं? फोन नंबर दिया था ना मैंने अपना, कभी फोन क्यों नहीं करते?
- आप भी तो मुझे नहीं करतीं। फिर मैं ही क्यों करूं क्योंकि मेरा शैम्पू खत्म हो गया, आपको मुझ से कोई काम नहीं पड़ता तो मुझे फोन नहीं करतीं...
- ऐसा नहीं है रोहित समय नहीं मिल पाता ना!!!
- क्यों,आप क्या करती हो पूरे दिन...आपको तो स्कूल भी नहीं जाना होता।
- अरे,पर ऑफिस तो जाना होता है ना!
- क्यों जाती हो दीदी ऑफिस?
- ह..म..म..म.... कमाने जाती हूं रोहित बेटा।
- ओह...आपके तो मम्मी पापा है ना..फिर आप क्यों कमाती हो?
- अब मैं बड़ी हो गई हूं ना...इसलिए!!!
- ओह, तो दीदी मैं भी जब बड़ा हो जाउंगा, कमाने के लिए ऑफिस जाउंगा।
- ठीक है,जरूर जाना। अभी बताओ..

- दीदी, एक दिन सड़क से बिल्कुल तुम्हारे जैसी लड़की जा रही थी। दीपक ने सबको बताया कि शायद आज दीदी आएगी सबके लिए बिस्किट लेकर... लेकिन तुम तो नहीं आईं। उस रोज मैंने दिन का नाश्ता भी ठीक से नहीं किया। फिर पेट भर जाता तो तुम कहतीं कि मैं जो लाती हूं तुम खाते नहीं हो....
- ओह....तुम एक फोन कर लेते रोहित...भूखे रहना पड़ा ना एक दिन
- कोई बात नहीं दीदी, शाम को पेट भर के खा तो लिया था फिर।
- मैं तुम्हें ढेर सारे बिस्किट दे जाती हूं इस बार...तुम उन्हें छिपा के रख लो, जब मन करे खा लेना।
-लेकिन दीदी, फिर दीपक,मनु,रेखा,अदिति और अली का क्या होगा...वो कैसे खा पाएंगे, तुम सभी के लिए ढेर सारे दिला जाओ।
उफ्फ... मन के अंदर कुछ चटका।
आंखों से लिजलिजा सा कुछ बहने लगा... मैं वहां होकर, वहां से बहुत दूर चली गई।
पहली बार मन इतने कड़वे तरीके से रोया, हे ईश्वर!!! मेरी तनख्वाह इतनी कम क्यों है?
खैर, इन दिनों मैं नई नौकरी ढूंढने में लगी हूं।

तरूश्री शर्मा

15 comments:

डॉ .अनुराग said...

कितनी मुश्किल है ना कुछ लोगो के लिए जिंदगी ...बहुत दिनों बाद आप आयी लेकिन अच्छा लिखा लेकर ....

विक्रांत बेशर्मा said...

तरुश्री जी,

दिल छु लेने वाली पोस्ट है,हम बड़े चाहे जैसे भी हों ..बच्चे मिल बांटकर ही कुछ खाते हैं ,आख़िर की ये पंक्तिया भावुक कर देती हैं :

-लेकिन दीदी, फिर दीपक,मनु,रेखा,अदिति और अली का क्या होगा...वो कैसे खा पाएंगे, तुम सभी के लिए ढेर सारे दिला जाओ।
उफ्फ... मन के अंदर कुछ चटका।
आंखों से लिजलिजा सा कुछ बहने लगा... मैं वहां होकर, वहां से बहुत दूर चली गई।


एक अत्यन्त मार्मिक पोस्ट लिखने के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं !!!!!!!!

ज़ाकिर हुसैन said...

सच बात है कि कुछ की जिंदगी बड़ी मुश्किल होती है.
लेकिन अफ़सोस भी तब होता है जब हम चाह कर भी उनके लिए कुछ कर नहीं पाते
मार्मिक पोस्ट के लिए बधाई.

roushan said...

वाकई दिल छू लेने वाली रचना है

विवेक said...

सबका दर्द जो कलम कहे...छू लेती है...हम सबकी कहानी है...दर्द साझा है...मुबारक..

Aadarsh Rathore said...

बेहतरीन प्रस्तुति

अभिषेक मिश्र said...

काफी अच्छी लगी रचना आपकी. ब्लॉग भी बेहतरीन है. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

राजीव करूणानिधि said...

great aalekh...waise likhne alawa aur kya shauk rakhte hain

अमृत कुमार तिवारी said...

बड़े ही साफगोई से भावनाओं को पेश किया हैं। लेकिन ज़िंदगी की बेबसी ही कुछ यूं है कि हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहीश पे दम निकले......

अमृत कुमार तिवारी said...

बड़े ही साफगोई से भावनाओं को पेश किया हैं। लेकिन ज़िंदगी की बेबसी ही कुछ यूं है कि हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहीश पे दम निकले......

Anonymous said...

marmik,hradayko shpars karne bali rachana.

Anonymous said...

marmik, hraday sparshi.

travel30 said...

sach duniya mein kitna gum hai .....


New Post :- एहसास अनजाना सा.....

singh sumit said...

thanks for this emotional post....very hearted when read this type of story...plz keep it up? I hope for days when All babies happy.........GOD NOT Left parents any babies

singh sumit said...

thanks for this emotional post....very hearted when read this type of story...plz keep it up? I hope for days when All babies happy.........GOD NOT Left parents any babies