Saturday, May 3, 2008

उसकी पहुंच...


सोचती हूं हर पल,
दर्द के गहराते पैमाने,
इतने गहरे कि,
मेरी आवाजों की कोठरियां
गूंजने लगे,
और हंसी का-
एक सिरा तक,
उसे छू न सके।
मैं सोचती हूं कि,
फिर वो -
कैसे पहुंचता है,
वहां तक??

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