वो आए तो हो गया यकीं हमको..
एक इसी की आरजू थी शायद।
दरख्तों के रोने का इल्म ना था,
परिंदों के उड़ने की जिद थी शायद।
फिक्र ना थी कि पाना है तुम्हे,
फिक्र तो जुदाई की थी शायद।
दामन-दामन जर्रा जर्रा बुत बना,
उसीके होने से रौनक थी शायद।
समझते थे कि समझा लेंगे,
यही गलतफहमी थी शायद।
रास्ते संग थे तो साथ ना थे,
हुए जुदा तो करीबी थी शायद।
खुदा से बढ़कर हम हुए हैं कब,
खुदाई का कोई कतरा थी शायद।
24 comments:
क्या खूब कहा है......
दरख्तों के रोने का इल्म न था
परिंदों के उड़ने की जिद थी शायद
सुभान अल्लाह....ओर हाँ चित्र भी एक गजल सरीखा ही है....
वाह्!! क्या खुब!! अति सुन्दर
आभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
दामन-दामन जर्रा जर्रा बुत बना
उसी के होने से रौनक थी शायद ।"
बहुत पसंद आयी ये पंक्तियाँ । सम्पूर्ण सत्य का सहज उदघाटन । आभार ।
दरख्तों के रोने का इल्म न था
परिंदों के उड़ने की जिद थी शायद
लाजवाब वैसे हर पँक्ति खूबसूरत है बधाई
ये ग़ज़ल तो वाकई दम तोड़ने वाली थी.. दरख्तों वाला और करीबी वाला शेर बढ़िया बन पड़ा है..
हर शेअर दिल के बहुत नज़्दीक़ रहा
दमदार लेखन है...
समझते थे क समझा लेंगे
यही ग़लतफहमी थी शायद
वाह !!
किस सादगी से
इतनी बड़ी बात कह दी आपने
बहुत अच्छी रचना है . . .
---मुफलिस---
khoobsoorat gazal
दरख्तों के रोने का इल्म न था
परिंदों के उड़ने की जिद थी शायद
Bahut hiUmda
फ़िक्र ना थी की पाना हैं तुम्हे
फ़िक्र तो जुदाई की थी शायद
बहुत खूब कहा हैं, शायद जिन्दगी भी हम इसी तरह जीते हैं, उन चीजो पर ध्यान दे कर जो हमें नहीं चाहिए, बनिस्बत अपनी शक्ति ऐसी जगह लगाने में जो हम पाना चाहते हैं.
Sabhi ka Shukriya.... darasal pahli baar main gazal likh payi...hamesha koshish jarur karti thi!!!
सचमुच में बहुत प्रभावशाली लेखन है... बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी… बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया.
आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें….
From- www.meripatrika.co.cc
Tarushree ji, aapne bhali-bhanti meri kavita "jor se de mara hai rishta" ke kathya ko antim do laino men samjha hai. saadhubad. main bhi Jaipur men hin rahta hoon.
बहुत खूबसूरत
वाह
दरख्तों के रोने का इल्म न था
परिंदों के उड़ने की जिद थी शायद
उम्दा रचना.
amazing poem ji , waah kya khoob likha hai , man ko choo gayi hai aapki rachna ...
aabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
बहुत शानदार लिखा है आपने शायद.
अरे शायद क्या यकीनन.
{ Treasurer-T & S }
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति है
वाह वाह वाह !!! मन को छू लिया आपकी इस रचना ने... .मन के भावों को अत्यंत भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने....चित्र भी बड़ा ही अनोखा और सुन्दर है....
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार.
Sabhi ka Shukriya.... darasal pahli baar main gazal likh payi...hamesha koshish jarur karti thi!!
ठीक ही कहा, यह कोशिश भी बढिया थी अब गजल लिख भी डालो, बहुत समय हो गया मुझे भी कोई टिप्पणी लिखे :)
"फ़िक्र ना थी की पाना हैं तुम्हे
फ़िक्र तो जुदाई की थी शायद...."
तारीफ़ करना ही काफी नहीं होगा शायद ....लेकिन लफ़्ज़ों की बंदिशों से बाहर जज़्बात निकले भी तो कैसे ?
"समझाते थे कि समझा लेंगे
यही गलतफहमी थी शायद !"
अभी बस यही ...!
gud.....kabil-e-tareef
gud...kabil-e-tareef
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