आज फिर दिल को हमने समझाया.

हमेशा लगता है दिल तमन्नाओं का ढेर है जिसमें उम्मीदें बुदबुदे की तरह अंगड़ाई लेती हैं...और जब पकड़ने की कोशिश करो...हाथ ही नहीं आती। कौन है जो दावा करता हो,कि मैं इसे पकड़ने की कोशिश नहीं करता। क्यों ना की जाए...फिर क्या सांस लेना और छोड़ देना जीवन कहा जाएगा? मैं नहीं मानती। जिंदगी की परिभाषा इस बुदबुदे के फूटने और इसे पकड़ने का उपक्रम ही तो है। किसके कितने बुदबुदे फटे और कितने पकड़ने में वो कामयाब हो गया... जिंदगी इसका नाम भी नहीं। बल्कि इसका जरूर हो सकती है कि किसने कितने बुलबुले पकड़ने की कोशिश की।
नाकामियों से जिंदगी की दिशा निर्धारित होती है...दशा नहीं। बल्कि सफलताएं कई बार दिग्भ्रमित करती हैं। आप भटकने लगते हैं और खुशी के सैलाब में एहसास तक नहीं कर पाते। मैं भी भटकी हूं कई बार...आप भी भटके हैं...सवाल है उस भटकाव से कैसे खुद को बाहर खींच लाएं? बहुत मेहनत करनी पड़ती होगी ना...गुरेज नहीं,क्योंकि भटकाव के उद्वेलन से बाहर आने के लिए आप उतनी मेहनत कर सकते हैं जितनी खोती जिंदगी को वापस पा लेने के लिए।
आज ग्रहण था...मैं सूरज और चांद की लुका छिपी से बनने वाली हीरे की अंगूठी (डायमंड रिंग) देखने के लिए उत्सुक थी। मैंने देखी...लगा एक नया बुदबुदा मिल गया है पकड़ने के लिए। फिर कवायद शुरू होगी...लगा जैसे जिंदगी की उमंग लौट आई है। बचपन में मैंने कभी चांद पकड़ने की जिद या कोशिश नहीं की। उम्र बढ़ने के साथ ये जिद कहां से आई,पता नही।
हां इतना पता है इस जिद का एहसास जब-जब हुआ,लगा कि मैं जिंदगी जी रही हूं।
अब मुझे नई रिंग चाहिए... प्रतीकात्मक है। पहले ही कह चुकी हूं मिलना या ना मिलना जिंदगी नहीं, उसे पाने की कोशिश करना जिंदगी है।
चांद पकड़ने की जिद है जिंदगी,
पाने की ख्वाहिश है जिंदगी।
तमाम उम्र जियो ना जियो,
खोकर पाने की कवायद है जिंदगी।
सितारा तो हमेशा दूर होता है,
हसरतों का साथ कब काफूर होता है....
चिड़ियों के बिछौने सी सख्त है राहें,
उन्हें नर्म बनाना ही तो है जिंदगी।
रात से सुबह औऱ सुबह से शाम,
गंवाकर हर दिन अंधेरा तमाम,
फिर दिन उगता है शाम ढलती है,
इसका इंतजार ही तो है जिंदगी।
18 comments:
लम्बे अन्तराल के बाद आपकी मौजूद्ज़्गी दर्ज़ हुई, शानदार कविता के साथ. बधाई.
बहुत सटीक चित्र खींचा है आपने जिन्दगी और अंतर्निहित आकांक्षओं का.
sehmat hai,bahut sunder likha hai aapne.har lafz se sehmat.wo naakami,zindagi,disha,aur dashawali line waah kya kehne,sahi.
अकेली यह लाइन "चाँद पाने की जिद है ज़िंदगी" अपने आप में बहुत कुछ कहती है वाकी आपका लेख बहुत सुन्दर. लिखते रहिये.
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बहुत दिनों बाद आई हो.. चलो कुछ लिखने की कोशिश तो की :)
ज़िन्दगी एक रोलर कोस्टर की तरह है.. जिसमे कई सारे उतार चढाव है.. पर असली रोमांच तो उसमे बैठकर सफ़र करने में ही है.. नीचे खड़े खड़े डरने में क्या मज़ा.. क्यों है ना ?
बिलकुल सही कहा आप्ने ये जिद ना हो तो ीआदमी ज़िन्दगी मे कुछ नहीं पा सकता अब चाँद पाने की जिद ने ही तो चांद पर पहुँचा दिया है बहुत सुन्दर कविता बधाई
आपकी अंत में दी गयी कविता जो जिंदगी के मायने बता रही है ...मुझे पसंद आई
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
antim panktiyaa jindagi ek talash hai our khatm hone tak shayad chalati rahati hai .......bahut hi sundar
बहुत ही सही कहा आपने.....सचमुच जिन्दगी यही है.....
आपकी कविता भी जिन्दगी का आइना बखूबी बड़ी ही खूबसूरती से दिखा रही है....
अरसे बाद आमद सुखद है ...
...जिंदगी रोज एक नया चाँद आसमान में बोती है ... आसमान कभी ढकता है बादलो से ....कभी खुला नजर आता है बिलकुल साफ़.....चाँद मगर रोज अपनी शक्ल बदलता है ...सुनते है कई चाँद किसी जिंदगी की गोद में पड़े देखे है..
आपने जिन्दगी को बड़ी खूबी से
ब्लॉग पर उतारा है।
बधाई हो!
ज़िन्दगी की परिभाषा आपने तो बहुत ही सटीक ढंग से दी है
बहुत सुन्दर कविता
बेहतर ढंग से प्रभावी अभिव्यक्ति । अविरत पढ़ता चला गया । चित्र भी बड़ा खूबसूरत है ।
Bahut dino baad likha hai kuch
chand pakadne ke zid, paane ke khwahish hai zindagi......
din ugta hai sham dhalti hai,
eska entzar hai zindagi... vakai bahut khubsurat line hai..
Bahut khub
Samajhti hu ki zindagi jeena bahut dileri ka kaam hai.... dar ke jeena to kya jeena!!! Thanx 2 all!
wah
tarushri
kya khoob paribhashit kiya aapne jindagi ko ...wah
chand pakadne ki jid hai jindagi .....khoker pane ki jid hai jindagi...wah
wakai aapka lekhan v shelly prabhavshali hai ....rakesh
Hi Tarushri.......tumhari kavitawon ke meethe ehsaas ne mere ander ke khoyi hasrat ko jaga diya .........Dua karunga tum aise hi likhati raho.........
Deepak Prakhar
# 9044316656
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