Tuesday, August 19, 2008

लटके हैं अरमां उल्टे


जुड़ने को था जो,
अभी बिखर गया,
बिना कहे...
सफर बदल गया।
ख्वाब था एक,
जुड़ा सा दिखता था,
पास आते ही,
मकड़जाल पर जमी,
बारिश की बूंदों सा..
कतरा कतरा ढुलक गया।

ताउम्र सोचने की
ख्वाहिश थी,
उससे मिलने की
एक गुजारिश थी,
वक्त से वफाई ना हुई,
घरौंदों सा बिगड़ गया।
मेहमां निकल गए,
बुलबुले की तरह,
अरमान ढह गए
सिलसिले की तरह,
रात का पंछी उड़ा,
चमगादड़ की तरह।
लटके हैं अरमां उल्टे
तिलिस्म की तरह।
सिर से गुजरते साये,
बादलों की तरह...
गोया कुछ पल बरसेंगे,
शायद ना भी बरसें।

बिखरे टुकड़े समेटने की
हिम्मत रख,
टूटे ख्वाबों में नया सुख
खोजने की हिम्मत रख।

18 comments:

कुश said...

सिलसिले की तरह,
रात का पंछी उड़ा,

ये सोच कमाल की है.. हालाँकि आप ये मौका कम ही देती है पर आपको पढ़ना सुखद होता है..
कोशिश कीजिए की नियमैट लेखन हो..

शैलेश भारतवासी said...

इतना बढ़िया फ्लो के साथ कविता आगे बढ़ रही थी, सारे बिम्ब भी पसंद आ रहे थे, शीर्षक पंक्ति तो विशेष पसंद आई थी कि आपने 'आधे सोए तिलिस्म की तरह' को थोड़ा लम्बा खींच दिया। इसे पुनः संपादित कीजिएगा। शेष मुझे बहुत पसंद आया।

बालकिशन said...

खुबसूरत दिल से निकली खुबसूरत पंक्तिया.
बहुत ही सुंदर.
आभार.

Anil Pusadkar said...

sunder rachana

डॉ .अनुराग said...

बेहद उम्दा...कुश का कहना ठीक है आप विश्राम लंबा न ले ...दूसरा शैलेश जी बात पर गौर फरमाये ...ब्लोगिंग में सच बोलने वाले कम है

तरूश्री शर्मा said...

सही कह रहे हो कुश... लम्बे विश्राम के बीच कई रचनाएं दम तोड़ देती हैं। इसलिए पूरी कोशिश करूंगी कि लिखती रहूं, तुम्हारे और अनुराग जी की तरह अनवरत...लेकिन सच है कि यह माद्दा सबमें नहीं होता। शैलेष, सही कह रहे हो... कुछ लम्बा हो गया है, मैं सिर्फ भावों में उलझ कर रह जाती हूं...व्याकरण का हिसाब नहीं लगा पाती। आगे से कोशिश करूंगी। अनुराग जी, शैलेष ने बड़े सलीके से सच बोला है....सही कहा आपने कि ब्लागिंग की दुनिया में सच बोलने वाले लोग बहुत कम हैं... लेकिन मैं चाहती हूं कि सलीकेदार सच बोलने का हुनर जिस किसी ब्लॉगर के पास है, वो एक बार मेरे कमेंच बॉक्स में अपना कमेंट जरूर डाले।

Dr. Ravi Srivastava said...

आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी
और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।
“उसकी आंखो मे बंद रहना अच्छा लगता है
उसकी यादो मे आना जाना अच्छा लगता है
सब कहते है ये ख्वाब है तेरा लेकिन
ख्वाब मे मुझको रहना अच्छा लगता है.”
आप मेरे ब्लॉग पर आए, शुक्रिया.
मुझे आप के अमूल्य सुझावों की ज़रूरत पड़ती रहेगी.

...रवि
http://meri-awaj.blogspot.com/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/

vipinkizindagi said...

शानदार पोस्ट.......

mkothari said...

Hai Taru,

Aise he likhate raho. Apne dil ke samunder ko nikal ias duniya ko kutch kadavi sacchaiauo sai avgat karaao.
Keep it up Taru.

Mamta

anilpandey said...

sahi likha hai aapnen bahut hi sahi likha hai aapnen . blog comment pr un lekhakon ke sujhaaon ko sahars sweekarna bhi bahut hi achchha lga . halanki jb aap hmare blog pr comment kie tb main aapko jaan ska pr sch men khushi mujhe aur bhi hogi jb apnen post pr nirantarata laayengi. kyonki 19 tareekh se ab tk aap ek bhi post nhin kie . jo ek bloggar kee kmjori hi kahi jaayegi . rhi bat rchna kee wastaw men bahut hi sundar. thanks !

ज़ाकिर हुसैन said...

सिलसिले की तरह,
रात का पंछी उड़ा,
शानदार रचना
आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी
और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।

Nitish Raj said...

बड़ी ही सही और अलग सोच
ताउम्र सोचने की
ख्वाहिश थी,
उससे मिलने की
गुजारिश थी,
वक्त से वफाई ना हुई
खूब लिखा आपने।

admin said...

जुड़ने को था जो,
अभी बिखर गया,
बिना कहे...
सफर बदल गया।
ख्वाब था एक,
जुड़ा सा दिखता था,
पास आते ही,
मकड़ी के जाल पर जमी,
बारिश की बूंदों सा..
कतरा कतरा ढुलक गया

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है। इस सुंदर कविता के लिए मेरी ओर से बधाई स्वीकारें।

Tarun said...

Bina kahe safar badal gaya.....bhut achhi lagi ye line.

विक्रांत बेशर्मा said...

बिखरे टुकड़े समेटने की
हिम्मत रख,
टूटे ख्वाबों में नया सुख
खोजने की हिम्मत रख।

दिल से निकल कर दिल तक जाती हुई नज़्म ....बहुत खूबसूरत

प्रदीप मानोरिया said...

मकड़जाल पर जमी,
बारिश की बूंदों सा..
कतरा कतरा ढुलक गया।
बहुत सटीक लिखा है आपने हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें

शारदा अरोरा said...

रात का पंछी उड़ा,
चमगादड़ की तरह।
लटके हैं अरमां उल्टे
तिलिस्म की तरह।
तरु श्री जी , आप 'लटकें हैं अरमान उल्टे , चमगादड़ की तरह ' भी लिख सकती हैं |बाकी दो पंक्तियाँ छोडी जा सकती हैं | माफ़ करिएगा , मैं हिन्दी में माहिर तो नहीं हूँ ,ऐसा लगा की ऐसा लिखने से कविता लगातार जानदार बनी रहेगी | सोच की अभिव्यक्ति बहुत ही शानदार है |

Shashank Khandelwal said...

Gr8 poetry mam...i m also a writer..have started writing recently...wud seek ur guidance...I appriciate ur Words...Gr8 Work!!