Friday, July 18, 2008

शायद, लड़की गलत थी...


ये मंजर पहली बार सामने आया हो... ऐसा नहीं था। कई बार लड़की ने सवाल पूछा था और हर बार लड़के ने उसे बहला कर बात को फिर नदी की तरह बहा दिया था। दोनों पानी की तरह एक दूसरे पर प्रेम बहाते थे, और इस बहाव का माध्यम था, मोबाइल फोन। ना लड़का कभी लड़की से मिला था और ना ही उसे लड़की ने कभी देखा था। प्रेम की नदी ने इंटरनेट के चैट रूम से एसएमएस और फिर मोबाइल से अपना सफर तय किया था। बातें हुई, एक दूसरे के कई सच बेपर्दा हुए और दोनों से कुछ छिपा ना रह सका।
लड़का वास्तव में नदी सा था, उसमें हमेशा बहाव था, कल कल थी। पानी की तरह बह रहे प्रेम की कल कल आवाज हमेशा उसी के मुंह से सुनी जाती थी। लड़की में ठहराव था, बोलती बहुत थी, लेकिन जमीनी सच्चाई से दूर... हवा में बहते प्रेम के इस रूप को वो आवाज नहीं दे पाती थी। या शायद, वह इस प्यार पर विश्वास नहीं कर पा रही थी और इस अनाकार के भविष्य में होने वाले आकार की कल्पना करने की कोशिश करती थी।
जब कभी झगड़ा होता, बहाव कुछ गाढ़ा होकर एसएमएस में तब्दील हो जाता और जब सब कुछ ठीक चलता... बातें बल खाती हुई, हवा की तरह बेधड़क अपना सफर तय करती। लड़की, इस बहाव पर लड़के द्वारा की गई जिंदगी की बातों की नाव तैराती थी और इसी पर अपने सपनों का वो महल बनाती थी जिसकी नींव खुद लड़के ने रखी थी। लड़की में उद्वेलन था, वो इन नावों को किनारे लगा कर जमीन पर महल खड़ा करना चाहती थी और इसके लिए उसे लड़के के मजबूत इरादों की छांव चाहिए थी। लड़की मजबूत इरादों वाली थी। चाहती थी, लड़के के हर कमजोर इरादे में अपने प्यार की जान डाल दे। अपनी परवाह की उसमें खाद डालती थी। लेकिन नतीजा...ज्यों का त्यों।
- शोर बहुत है...पार्क में आकर बात करो।
- ठीक है...थोड़ी देर में पहुंचता हूं।
दो घंटे बीत गये थे। लड़की उसके फोन का इंतजार कर रही थी। सोते, जागते, काम करते, ऑफिस में खबरों से लड़ते... अवचेतन अवस्था में हर समय वो यही तो करती थी।
जरूर कहीं काम में बिजी हो गया होगा। लड़की ने सोचा था।
तभी फोन बजा। अजब संयोग था.... हमेशा बहुत देर के बाद जब उसके फोन नहीं आने की बात दिमाग पर हावी होने लगती कि उधर से फोन आ जाता था।
- लो मैं पार्क में आ गया, तुम्हारे कहने के मुताबिक।
- ओह... जैसे हमेशा जो मैं कहती हूं, वैसा ही करते हो।
- कब नहीं किया बताओ?
- अब रहने दो... कुछ और बात करो।
- क्या बात करनी है बोलो....
- तुमने हमारे रिश्ते के भविष्य के बारे में क्या सोचा है?
- .......
- बोलो.... हमेशा मेरे इस सवाल पर तुम्हारा चुप हो जाना, अब मुझे चुभने लगा है।
- नहीं, मैं चुप नहीं हूं....
- तो बोलो...
- क्या बोलूं... समझ नहीं आ रहा है?
- तुम जानते हो इस मुद्दे पर कई बार हम दोनों के बीच तकरार हो चुकी है। अब तो बताओ कि आगे क्या करना है? मैं क्या करूं? तुम जानते हो मैं पहले भी तुमसे बिना पूछे, बिना बताए अपना रोका तोड़ चुकी हूं। और बाद में तुमने कहा था कि मेरे कहने से किया है क्या?
- .......
लड़का मौन था, वो भी सोचने लगी थी। तब भी तो उसने इस रिश्ते को एक सही दिशा देने की कोशिश की थी। तब लड़के ने कहा था, बहन की शादी नहीं होने तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। लड़की ने कहा था मैं तो खुद इस बात से सहमत हूं.... पहले बहन की शादी होगी...तभी हम शादी करेंगे। लेकिन इस बारे में कोई ठोस बात तो कहो.....
लड़का तब भी कोई ठोस बात कहने से बच गया था, और लड़की अपनी भावनाओं के आगे बेबस होकर...उसकी गोल मोल बातों में भविष्य की सम्भावनाएं खोज कर चुप हो गई थी। सब कुछ फिर से पटरी पर आ गया था.... नदी बह चली थी, बेधड़क संवाद की, एक बार फिर। अचानक आज फिर असुरक्षा की भावना के बीच लड़की के दिमाग में यह सवाल कौंध गया था।
- मैं पूछ रही हूं तुमसे कुछ.... जवाब दो।
- ह..म..म... सुन रहा हूं।
- मुझे जवाब की जरूरत है, तुम्हारे सुनने की नहीं।
- क्या पूछना चाहती हो...
- उफ्फ्फ... कहा ना कि हमारी शादी के लिए क्या प्लानिंग है?
- हां.... बहिन की शादी होगी...
- तो क्या मैं तुम्हारी बहन से शादी करूंगी?
- नहीं.... मैंने यह नहीं कहा...
- यह कन्फ्यूजन इसलिए हुआ है क्योंकि मेरे सवाल का जवाब वह नहीं, जो तुम दे रहे हो.... मैं साफ साफ जवाब चाहती हूं...
- क्या कहूं...
- वही कहो जो तुम सोचते हो....
- सच कहूं तो यही समझ नहीं आता है।
- आश्चर्य कि जिस बात पर हमने इतनी बार बहस की...उस बारे में तुमने सोचा तक नहीं?
- क्या कहूं....
- बताओ...मैं क्या करूं?
- तुम अपने पेरेन्ट्स की बात मान लो।
- ठीक है....
- लेकिन अपना फोन बंद मत करना...मुझसे बात करती रहो।
- मैं कई बार कह चुकी हूं...मुझसे यह नहीं होगा। इस तरह से रिश्ते की लाश ढोना मेरे बस की बात नहीं.... मैं इसका दाह संस्कार करके इसके गम के साथ जीना पसंद करूंगी।
- प्लीज...सुनो मेरी बात मान लो।
- नहीं....हां इतना कर सकती हूं कि जब कभी मैं इस दर्द से बाहर निकलूंगी, तुमसे एक बार जरूर बात करूंगी।
- प्लीज...ऐसा ना कहो, मुझसे बात करती रहो।
- नहीं... सॉरी, चलो बाय।
लड़की अब आगे बोल नहीं पा रही थी। उसने फोन रखकर अपनी मौजूदगी में रोना मुनासिब समझा। खूब रोई आज वह..... हालांकि ऐसा तो पहले भी हो चुका था और हर बार लड़के ने उसे मना कर वापस नदी में बहा लिया था। लेकिन इस बार उसने जोर डालकर वह बात लड़के के मुंह से कहलवा ली थी जिसे वह कहना नहीं चाहता था। वैसे इस सच का अंदेशा उसे था, लेकिन आज उस अंदेशे ने सच का आकार ले लिया था।

एक पूरे दिन कोई संवाद नहीं हुआ। शाम होते ही मोबाइल पर मैसेज ब्लिंक कर रहा था।
- मैं नहीं रह पा रहा हूं तुम्हारे बिना। प्लीज मुझे तुम्हारी आदत हो गई है। हम लड़ लेंगे लेकिन बात करती रहो...
लड़की को लड़ाई से दुख नहीं था...लेकिन आज भी लड़के की बात में वादे और इरादे की मजबूती दूर दूर तक नहीं थी। लड़की ने रिप्लाइ मैसेज टाइप कर दिया-
- पेपर कैसा हुआ?
- ठीक हुआ। क्या मैं तुमसे रिलायंस वाले फोन पर बात कर सकता हूं?
- सॉरी नहीं... वैल अच्छा है कि पेपर अच्छा हुआ।
रात ढल चुकी थी। खाना खाकर सोने की तैयारी में थी लड़की। नींद को खोज रही थी....सारी खूंटियां टटोल आई थी.... नींद थी कि जाने कहां टंगी थी, मिलती ही नहीं। धड़ाधड़ सवेरा हो गया.... आंखों में कैसे कटती है रात, इसका लड़की को खूब अनुभव हो गया था। सवेरे मोबाइल को एक बार देख चुकी थी कि शायद कोई मैसेज आया हो....
और लो मैसेज हाजिर।
- मैं नहीं रह पाउंगा तुम्हारे बिना। हम अलग नहीं हो पाएंगे... इतना लड़ते हैं फिर साथ आ जाते हैं। इसको हमारी नियती मान लो....
- लेकिन कल तो तुमने कहा कि पेरेन्ट्स की बात मान लो...
- हां कहा था... जब तक तुम्हें कोई विकल्प नहीं मिल जाता, मुझसे बात करती रहो। और जब कोई मिल जाए तो चली जाना।
लड़की पर पहाड़ टूट पड़ा था। लड़का आखिर चाहता क्या है? और क्यों? जब अलग ही होना है तो कुछ दिन के लिए जुड़े रहने का स्वांग या मजबूरी क्यों? बुरा लगा था उसे... जिस चीज को आकार देना चाहती थी वो उसकी लाश पर अपनी रोटियां सेकना चाहता था लड़का।
- अगर यही ढुलमुल रवैया है तो सुन लो। मुझे विकल्प मिल गया है, नवंबर में शादी की बात चल रही है। गजब के कमजोर इंसान हो तुम....
लड़की ने झूठ बोला था.... लेकिन यह उसका आखिरी दांव था। शायद अब भी वो बोल दे.... कि नहीं... तुम कोई शादी नहीं करोगी.... मैं खुद बात करूंगा तुम्हारे परिवार से और बहन की शादी के बाद हम भी शादी कर लेंगे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। एक बार फिर संवाद बंद...
लड़की को इसकी आदत हो गई थी। उसे अपने घर में बिखरी, फैली बेवजह जगह घेरती चीजों से चिढ़ होती थी। जिंदगी में भी वो हमेशा ऐसे बेवजह के ख्यालों और रिश्तों को खुद से दूर रखती थी। हमेशा खुद से लड़कर हिम्मत जुटा लेती थी। शाम घिर आई थी.... वो ऑफिस से निकलकर घर आ गई थी। फोन पर फिर मैसेज ब्लिंक हुआ-
- ठीक है। आज के बाद मैं तुमसे कोई वास्ता नहीं रखूंगा। ना ही कोई मैसेज करूंगा, ना ही कॉल औऱ ना ही मेल। बस तुम जहां भी रहो खुश रहो।
-ओ.के.। मैं जब भी खुद को इस काबिल समझूंगी कि तुमसे बात कर सकूं, उस दिन फोन जरूर करूंगी। लेकिन इंतजार मत करना। बाय..
- ठीक है। लेकिन एक बात कहना चाहूंगी.... अब िकसी से वो बातें और वादे मत करना, जिन्हें तुम पूरा ना कर सके।
- ठीक है...जैसा आपका आदेश। लेकिन इतना कहूंगा कि मेरी मजबूरी अगर तुम समझ पातीं तो शायद ऐसा ना कहतीं। खैर जहां रहो...खुश रहो, तुम्हारी सारी चाहतें पूरी हों।
खोखली बातें..... हुंह। लड़की को याद आईं वे सभी मजबूरियां जो लड़के ने वक्त वक्त पर गिनाईं थीं.... कुंडली नहीं मिलती, बहिन की शादी नहीं हुई है, मैं तुम्हे खुश रख पाउंगा या नहीं। एक एक मजबूरी का लड़की ने हल खोज कर बता दिया था, लेकिन आज फिर उस मजबूरी की दुहाई.... उफ्फ्फ... गहरी सांस ली थी उसने। अंगुलियां फिर मोबाइल के की पैड से खेलने लगी थी....
- एक औरत का प्यार भी अगर आदमी की मजबूरी को कम ना कर सके तो जाहिर सी बात है कि नीयत में खोट है। आज मुझे जवाब देना भले ही तुम्हारी मजबूरी ना हो, लेकिन एक दिन तुम्हारा मन खुद तुमसे चीख चीख कर जवाब मांगेगा। और वो वक्त तुम्हें इससे भी भारी लगेगा... जितना आज मुझे या तुम्हे लग रहा है। ये मेरी चाहत है और और जरूर पूरी होगी क्योंकि इसकी दुआ तुमने की है। और हां... अपनी ये दुआएं मुझ पर लुटाना बंद करो, इन्हें संभाल कर रखो। मेरे सामने मंजिलें कई हैं और उन्हें पाने के लिए मुझे तुम्हारी दुआओं की बैसाखियों की जरूरत नहीं, मेरे पास दोस्तों के मजबूत कंधों का सहारा है।
एसएमएस कुछ लम्बा हो गया था, सात मैसेज के बराबर... लेकिन लग रहा था कितना लिखना अभी बाकी है। लेकिन अब बस.... बहुत हुआ। लड़की जानती थी एसएमएस का जवाब एसएमएस से होगा, कॉल करने की हिम्मत तो लड़के में है नहीं। खैर जवाब आया-
- क्यों कोस रही हो.... मैंने तो तुम्हे दुआएं दी हैं।
सही तो कह रहा है....लड़की ने उसके बाद लड़के के किसी मैसेज और कॉल का जवाब नहीं दिया।
रिश्ते की शुरूआत में लड़के ने लड़की के सामने अपने पिछले प्यार में नाकाम रहने की दास्तान सुनाई थी। लड़की ने कहा था....अगर तुमने यह किया होता और यह नहीं, तो सब कुछ ठीक हो जाता। लड़की ने भी अपने पिछले प्यार की दास्तां सुनाते हुए एक और धोखा झेल नहीं पाने की बात कही थी। लड़के ने हर बार धोखा नहीं होने और विश्वास रखने को कहा था।
इस बार फिर लड़का नाकाम हुआ था.... और लड़की को....??????
शायद लड़की कहीं ना कहीं गलत थी। कहां -कहां, यह आप बता दें... दूसरों की तरह मैं भी मानती हूं कि हर किस्से में लड़की गलत होती है... आखिर आप और मैं समाज का ही हिस्सा हैं ना?

22 comments:

कुश said...

लड़की में ठहराव था, बोलती बहुत थी, लेकिन जमीनी सच्चाई से दूर...
बहुत गहरी बात कही अपने इन पंक्तियो में

लड़के का रिलायन्स फ़ोन पे बात करने को कहना ये दर्शाता है की बात फ्री में होती थी इसलिए की

आज के समय की सबसे ज़्यादा होने वाली बात को आपने बिल्कुल सही और स्पष्ट शब्द दिए है... मुझे बेहद पसंद आई आपकी ये पोस्ट..

क्या ये कही प्रकाशित भी हुई है?

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

acha likha aapne

Udan Tashtari said...

अच्छी पोस्ट, बधाई.

vipinkizindagi said...

अच्छी पोस्ट है,
क्या सही है क्या ग़लत है वक़्त हमे बताता तो है मगर हम आँखे मूंद लेते है, और यही होता है हर कहानी में, कही लड़का ग़लत होता है कही लड़की ग़लत होई है.

डॉ .अनुराग said...

amuman kai bar jab aap koi lambi post daalte hai tab usme pathniyata bani rahe is bat ka dhyaan bhi rakhna padta hai ,lekin aapki post me dilchaspi barkraar hai.....bahut khoob...

Unknown said...

बहुत ख़ूब दोस्त...तुमने जो लिखा है, वो ज़मीनी हक़ीक़त है। उम्मीद करता हूं कि 'तरु' की छांव में शीतलता देनेवाले कुछ और पोस्ट पढ़ने को मिलेंगे। हार्दिक बधाई।

Unknown said...

बहुत ख़ूब दोस्त...जो भी लिखा है ज़मीनी हक़ीक़त से परे नहीं है। उम्मीद है 'तरु' की छांव में सोचने को मजबूर करनेवाले और शीतलता प्रदान करनेवाले कुछ और पोस्ट पढ़ने को मिलेंगे।

तरूश्री शर्मा said...

शुक्रिया, इतनी लम्बी पोस्ट पढ़ने के लिए। वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप पूरा पढ़ेंगे और शायद यह सच भी हो.... क्योंकि मेरे सवाल का जवाब अभी भी बाकी है। भले ही आपको मैं थोड़ी रूखी लगूं....लेकिन आप लोगों के स्नेह और प्रशंसा ने मुझे बिगाड़ दिया है...इसलिए एक बात कहना चाहती हूं। हमेशा सिर्फ पोस्ट डालकर आप लोगों के कमेंट पा लेना मेरे ब्लॉग पर पोस्ट डालने का उद्देश्य नहीं होता। कई बार मैं आपका ध्यान कुछ मुद्दों पर खींचना चाहती हूं... चाहती हूं कि आप लोगों के माध्यम से उस पर बहस हो सके। इस पोस्ट में भी मैंने ऐसे ही कुछ सवाल छो़ड़े हैं... लेकिन हम कहीं ना नहीं, स्वार्थी ब्लॉगर हो गए हैं। सिफॆ कमेंट डालकर सामने वाले को खुश कर देते हैं... मुद्दे हमें उद्वेलित नहीं करते। शायद ये मेरी पोस्ट की कमी हो। खैर... जो जिस बात पर आपने अभी तक ध्यान नहीं दिया, मेरी गुजारिश पर अब सही।

योगेन्द्र मौदगिल said...

भई वाह एक उम्दा भावकथा पढ़वाने के लिये आभार

Prabhakar Pandey said...

लंबा लेख पर बहुत ही रोचक और यथार्थ। सटीक और सुंदर शैली। बहुत ही अच्छा लगा आपको पढ़ना। लिखती रहें। साधुवाद।

شہروز said...

पहली बार इस तरफ आया, लेकिन आना सार्थक लगा.
ब्लॉग ने रचनाधर्म को निसंदेह नयी दिशा दी है.
आपके लेखन में ताजगी लगी.
कभी समय हो तो इधर रुख करें और

www.hamzabaan.blogspot.com पर पढें खतरे में इसलाम नहीं और www.shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com पर आदमी...

Smart Indian said...

कहानी अच्छी है.

जरूरी नहीं है कि हमेशा कोई न कोई ग़लत ही हो. हाँ इतना ज़रूर है कि दोनों ही साहसी नहीं हैं और थोड़े स्वप्नजीवी भी हैं, बड़ी बड़ी क़समें खाने से पहले एक दूसरे को देखना-जाँचना-परखना ज़रूरी है.

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी रचना में दम है काफी देर तक बांधे रखा,आपको पढ़ कर अच्‍छा लगा।

Anonymous said...

paristhitiyan dono ke hitkar ho vajib nahi . kaun galat tha kaun sahi na aap kah saki naa hum kahenge

महेन said...

अजीब इत्तिफ़ाक है कि अभी कुछ महीनों पहले ही मैनें अपनी एक स्टूडेंट को उसके ब्रेक-अप के बाद सपोर्टिव चैट के दौरान कहा था कि प्रेम के आग़ाज़ में लड़की अकसर ग़लती कर जाती है पर उसके अंत में अकसर लड़की ही सही होती है। ख़ैर किस्सा तो बहुत लंबा है मगर कुल जमा बात ये कि आपने तो मेरे पूरी विचारधारा को पलट दिया।
मैं आपकी बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखता। ग़लत कोई भी हो सकता है और कई बार दोनों के सही होने के बाद भी बात नहीं बन पाती। जैसे ज़रूरी नहीं कि दो खूबसूरत चीज़ें साथ-साथ अच्छी लगें वैसे ही ज़रूरी नहीं कि दो समान लोग एक साथ रह सकें।

Anonymous said...
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Anonymous said...
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अनिल रघुराज said...

तरुश्री जी, गलती ज्यादा लड़के की है और थोड़ी लड़की की भी। ज़िंदगी और भविष्य से डरनेवाले प्यार नहीं कर सकते। लड़के में कम से कम ये हौसला होना चाहिए था कि जो भी होगा, कर लेंगे। और लड़की को अपने प्यार पर भरोसा होना चाहिए था। खैर, आप मेरे ब्लॉग पर आईं तो आपकी रचनाशीलता का पता चला है। मैंने भी इस थीम पर कुछ लिखने की कोशिश की है। कभी इत्मिनान से पढ़िएगा।

जब वह अन-रीचेबल हो गया अतल सागर में

पार्टनर को पूरक नहीं, प्रतिस्पर्धी मान बैठते हैं हम


मेरे बिना तुम्हारा घर ठीक ही चल रहा है तो...


एक जोड़ी काबिल मेहनती सपने

विक्रांत बेशर्मा said...

तरुश्री जी,
आज पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा , बहुत ही सुंदर ढंग से आपने ये कहानी लिखी है ...हर एक पंक्ति की अपनी विशेषता है जो आगे पढने को मजबूर करती है ...पढ़ते पढ़ते कब कहाह्नी खत्म हो गई पता ही नही चला ! लड़की हर बार ग़लत हो ऐसा नही होता ....प्यार की नींव कमिटमेंट है...इस रिश्ते में कोई कमिटमेंट नही थी ..इसीलिए शायद टूट भी गया !एक बहुत अच्छी पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें !!!!!!!!!

Devesh Gupta said...

बहुत ही अच्छा लिखा है .... इतने सहज और खूबसूरत शब्दों के साथ कमाल का फ्लो है आपके लेखन में ... बधाई

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

waise galti dono ki thi......
kyoki jindagi me pyar ek bar hota hai, sau bar nhi...
najaren ek bar bhatakti hai, hajar bar nhi....
waise apki ye rachana hai bahut achhi......aur bilkul yatharth ka darshan kra rhi hai....

नवनीत नीरव said...

jinke baton ki koi kimat nahi hoti un par sahaj hi vishwas kar lena khud ke chhal karne ke barabar hai.vertaman samay ke rishte jo mobile ya phir internate chatting ke jariye bante hain, wnki kimat ya to kam hoti hai ya phir we mulyahin hote hain.aapke is post main galti dono ki hi hai jo unhone is mobile ke riste par bharosa jatana chaha. aaj kal jab ek chhat ke niche rehne walon ke riston mmain dararein aa jatati hain to yah rista to kaphi door ka tha.
Phir bhi yah post achha laga. Visheshkar lekhan shaili.
Dhanywad.