Saturday, July 5, 2008

ये मेरा...हां मेरा नाम है।


वो गुलाब के फूल थे,
तेरी डायरी में लिखे,
मेरे नाम से दिखते हर्फ़े,
जो तेरी कसमसाहट बयां करते थे।
हर शब्द पर कई कई बार फिरी कलम,
और उसे गहरा बनाने की चाह में,
एक दूसरे में गुंथे,लिपटे से अक्षर।
इतनी कवायद से कागज पर-
पहचान खो चुका नाम,
तेरी भावनाओं की खुशबु से सरोबार,
एक फूल सा बन पड़ता था।
लेकिन मैं पहचानती थी,
ये मेरा...हां मेरा नाम है।
कहीं ना कहीं पड़ा होगा,
तेरी डायरी में अब भी,
वो फूल जो कभी सूखेगा नहीं,
गुलाब का सुर्ख फूल...
मेरी डायरी में रखे
मोगरे के ऐसे ही फूल की तरह।
आखिर तुझे मोगरे की,
और मुझे गुलाब की-
खुशबू जो पसंद थी।

10 comments:

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Anonymous said...

taruji bahut sundar kavita likhi hai. likhati rhe.

संजय शर्मा said...

"एक दूसरे में गुंथे,लिपटे से अक्षर।"
रचना में भी गुलाब और मोगरे की खुशबू के साथ यथार्थ मौजूद है . सच में क्या लिखा है !
"हर शब्द पर कई कई बार फिरी कलम,
और उसे गहरा बनाने की चाह में,"

डॉ .अनुराग said...

इतनी कवायद से कागज पर-
पहचान खो चुका नाम,
तेरी भावनाओं की खुशबु से सरोबार,
एक फूल सा बन पड़ता था।
लेकिन मैं पहचानती थी,
ये मेरा...हां मेरा नाम है।
कहीं ना कहीं पड़ा होगा,
तेरी डायरी में अब भी,
वो फूल जो कभी सूखेगा नहीं,


वाह.....बहुत खूब... लिखती रहे .....

अमित पुरोहित said...

बहुत खूब ! क्या बात हैं ! और क्या कहूं सब तो आपने कह डाला ! फ़िर भी इतना कहूँगा मुझे मोगरा कभी पसंद नही रहा लेकिन यह कविता बहुत पसंद आई हैं. .. इस खूबसूरत कविता पर आपके नाम के सिवाय और किसी का नाम नही हो सकता था, इतना तय हैं, बाकि आप जाने...

shailendra tiwari said...

badi rurukakr padani padi yah kavita, bahut hi khubsurat hai. dil se jitni bhi tarif ki jaye kam hai. likhate rahen.

Anonymous said...

Taru ji Aapka blog padha... ek ek rachna laga mano seedhe hriday ki gehraiyon se kagaz par uker di gai ho...aapka judav avashya hi mahilao ki samasyao se raha hoga, aapki rachnaye bahut hi sundarta se chitran karti hai mahilao ki sthiti aur unke man main chal rahe vicharo ka... bahut bahut badhai ho aisi khubsurat aur samasyao ke hal dhoondhne wali rachnao k liye.. aap jaisi rachnakar ko naman.

शैलेश भारतवासी said...

खुश्बू तो मन के कोने में जिंदा रहती है, वो कहाँ मिटेगी!

अच्छा लिखा है आपने।

vipinkizindagi said...

आँखो के आँसुओं को दरिया करने है,
मंज़िल की राह में अभी तो कई सफ़र करने है,
तू हार न मान ए महुआ ज़िंदगी से,
अभी तो ज़िंदगी के कई समंदर पार करने है,

Anonymous said...

रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति