कुछ ही वक्त गुजरा होगा,
जब तुम मेरे सब कुछ थे..
जिसे मैं नहीं दे पाती थी कोई नाम।
उस धुरी की तरह...
जिसके इर्द-गिर्द,
मेरी जिंदगी सा कुछ टंगा था...
और मैं कोशिश करती थी,
उसे खींच लाने की अपने पास...
कई बार....
लेकिन हर बार नाकाम।
शायद तुमने भांप लिया था-
तभी तो आए थे एक दिन-
लौटाने मेरी जिंदगी सा वो कुछ,
जो बोझ सा टंगा था तुम्हारे इर्द-गिर्द।
हां...
मैं उसे लिवाना कब चाहती थी...
और तुमने भी कब पूछी थी,
मुझसे मेरी ख्वाहिश...
तुम्हीं तो कहते थे ना...
ख्वाहिशें नर्म होती हैं,
मखमली कालीन पर अलसाई सी..
और कभी-कभी,
जिंदगी की रेत पर फिसलती सी।
अरसा हो गया है अब...
और जिंदगी ने देख लिया है,
ख्वाहिशों का फलसफा...
कुछ कुछ तुम्हारे फलसफे से-
मिलता-जुलता सा।
तुम आना एक बार...
देखना कि कैसे ख्वाहिशों से,
बनती है जिंदगी...
रेत का ढेर और
कैसे हवा का एक झोंका,
उस पर बना जाता है
तुम्हारा अक्स...
तुम आना जरूर,
बस एक बार....
आओगे ना?
30 comments:
कितने दिनो बाद कोई पोस्ट मिली यहा.. और वो भी बहुत खूबसूरत.. शब्दो के चयन के साथ साथ चित्रो का चयन भी बढ़िया रहा..
बहुत ही बेहतरीन लगी आपकी यह रचना
भोगा गया सत्य।
भोगा गया सत्य।
इस रचना का शीर्षक बदल कर मैं ’आओगे ना?" रख देना चाहता हूं. सब कुछ उसी तुम और मैं के इर्द-गिर्द घूमता हुआ.
बहुत सी पंक्तियां मन का अनन्त गह्वर छूती हैं - जैसे-
"जिन्दगी ने देख लिया है,
ख्वाहिशों का फ़लसफ़ा...
कुछ-कुछ तुम्हारे फ़लसफे से-
मिलता-जुलता सा."
और अन्तिम तीन पंक्तियों की मनुहार -
"तुम आना जरूर,
बस एक बार...
आओगे ना?"
मुझे भी विकल कर देती है.
धन्यवाद ऐसी मनोहर रचना के लिए.
bahut badhiya...
kaafi sundar rachna hai...
गहरे भाव वाली सुन्दर कविता
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
BEHAD UMDA LIKHA HAI AAPNE SHABDON KA UMDA SANJOYAJAN BEHATAR ABHIBYAKTI DIYA HAI AAPNE BAHOT BAHAYA..DHERO BADHAI AAPKO...
ARSH
bahut sundar ek dam dil se badhai
वाह जी वाह बहुत सुंदर रचना और साथ में लगे चित्र सोने पे सुहागा
जितने सुंदर भाव उतने ही लाजवाब शब्द...कमाल की रचना है ये आप की...मन को गहरे छूती हुई...वाह.
नीरज
सुंदर भाव, सुंदर शब्द, और एक बेहतरीन कविता.
विरह की पीड़ा को बहुत अच्छे ढंग से पेश किया है आपने. मन को भा गया ये कविता.
धन्यवाद
Vaakai taru jaise aap ne esmey mann ke vyatha ko udel diya hai, ek ek sabd etney kareeney se piroya gaya hai ke apni bhavnao ko vyakt kerne ko sabd nahi mil rahey hai. vaakai bahut he hridayaspershi avam marmik.....
bahut hi badiya. man ko chho lene wali rachana.
vaqt mile to mere blog (meridayari.blogspot.com)par bhi visit karen
बहुत बहुत सुंदर
ये रेत के झोंके भी अजीब होते हैं वही कुछ बनाते हैं जो टीस दे जाते हैं
और बिगाड़ते हैं तो भी टीस
kaise banti hai jindgi... ret ka dher or kaise hawa ka jhonka uspar bana jata hai tumhara ask....
achchhi. bahut achchhi. kavita hai.
आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा.... मेरी कामना है कि आपके शब्दों को नए अर्थ, नए रूप और विराट संप्रेषण मिलें जिससे वे जन-सरोकारों के समर्थ सार्थवाह बन सकें.......
कभी फुर्सत में मेरे ब्लॉग पर भी पधारें...
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर- आनंदकृष्ण, जबलपुर
कितनी भी तपती हुई रेत क्यूँ ना हो...........इन शब्दों से बाँधा कोई भी चला आएगा.....जिनमें इतना नेह भरा आमंत्रण हो....इन नेह और उपालंभ भरे शब्दों को सुनने ही तो हम यहाँ पर आए.....इस तपती रेत पर....पैर तो ना जले....हाँ अच्छा जरुर लगा.....बहुत दिनों बाद ये स्पर्श जो था...आपका अपने शब्दों के साथ.....!!
bahut achhi kavita.
khaskar ant ki 7 line mujhe bahut hi zyzda achhi lagi.
इंतजार की भावनाओं की भावुक अभिव्यक्ति.
वाह.... बेहतर भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई..
बहुत ही उम्दा नज़्म है !!!
बहुत ही अच्छी कविता। बधाई
बहुत ही अच्छी भावना से लिखी गई कविता।
बहुत शानदार रचना....
"बनती है जिंदगी
रेत का ढेर..."
बहुत ही खूबसूरती से आपने भावनाओ को शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया है...
"बनती है जिंदगी
रेत का ढेर..."
बहुत ही खूबसूरती से आपने भावनाओ को शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत किया है...
m speechless...
बहुत सुन्दर मनुहार की कविता
और अन्तिम तीन पंक्तियों की मनुहार -
"तुम आना जरूर,
बस एक बार...
आओगे ना?"
मुझे भी विकल कर देती है.
धन्यवाद ऐसी मनोहर रचना के लिए.
Deepak Prakhar
# 9044316656
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