इस नाशुक्रे से दौर में आखिर वे क्यों नहीं समझते कि क्या परोस रहे हैं... क्यों और आखिर कब तक... क्या जब तक हमारी आवाज हम तक पहुंचना बंद हो जाए????
मुझे अब कोई आवाज नहीं आती।
भले ही,
बमों के होते हैं धमाके,
कई राउंड चलती है गोलियां,
ग्रेनेड्स भी कभी कभार आ गिरते हैं,
लेकिन मुझे....
कोई आवाज नहीं आती।
औरतें रोती हैं,
आदमी क्रोध में कांपते हैं,
बच्चे भी पूरा मुंह खोलकर-
आंसू गिराते हैं...
लेकिन मुझे...
कोई आवाज नहीं आती।
कहीं दिखते हैं,
चेतावनी के शब्द।
घूमते कमांडो-पुलिस के जवान,
गुजरती हैं,
दनदनाती लालबत्तियां भी,
लेकिन मुझे....
कोई आवाज नहीं आती।
धुंआ दिखता है,
भीड़ दिखती है,
आक्रोश दिखता है,
कोई मोमबत्तियां ले जाते,
तो कोई,
शहीदों को चढ़ाने बड़े बड़े फूल,
कुछ हाथ उठाकर,
कुछ कहने का अभिनय करते से,
और कुछ
नेता से दिखते दरिंदे सिर झुकाकर मौन,
कुछ आस्तीनों में रेंगती सी परछाइयां,
कुछ भैंस के आगे बजती सी बीन,
लेकिन मुझे...
कोई आवाज नहीं आती।
उफ्फ...कोफ्त है या...
कानों में क्यों अहसास नहीं,
आखिर क्यों...
क्यों,वक्त की आवाज आज साथ नहीं।
कहीं ये बहरापन?????
नहीं.. मुझे अब भी आती है आवाज,
हाथ के रिमोट पर अंगुलियों के जाते ही,
ये है वो आतंकवादी...,
ये उसका परिवार..,
ये उसकी मां..,
ये उसकी बहिन..,
ये पिता..,
ये बेचारा, परिवार बेचारा,
मुल्क बेचारा,जनता बेचारी,
नेता बेचारा,
बम बेचारे, आका बेचारे
और उफ्फ्फ.... कितने बेचारे हैं ये कान।
तरूश्री शर्मा
29 comments:
kitna sahi likha hai aapne lekin ise samjhne ki koshish koi nhai karta hai ...
pata nahi kag chetenge log...
बिलकूल सही लिखा है आपने....आज के दौर में हम यही तो करते हैं...घरो में दुबक कर बैठ जाते है रिमोट लेकर....कोसते है..इससे तो कभी उसे......शायद system ने हमें कहीं न कहीं नपुंसक बना दिया है..sam vedan-heen.,..हो गए है humlog....आज की samaaj की बिलकूल सही सही aaaklan किया हैं आपने.
Om Prakash
om2020@gmail.com
बहुत सुन्दर लिखा है। दिल से लिखा है। बधाई स्वीकारें।
सच कहा तनु जी सवेदनशीलता हमारी जिंदगी से जैसे गायब होती जा रही है.....ओर हम मशीनी मानव बन गए है ,आत्म केंद्रित ....समाज से परे....
koi aawaz nahi aati .. badhiya shirshak ke sath bahot hi khubsurat kavita ....... bahot khub likha hai aapne dhero badhai aapko.....
wakai ham shayad inte bechare ho gaye hai..
सही लिखा है आपने, जो आवाज आती है, वो सुनने योग्य नहीं होती। आम लोगों की आवाज तो दब ही गई है। मेरे ब्लॉग पर पड़े लेख में भी यही कहा गया है। आम नहीं, खास लोगों की है ये मीडिया। या तो स्वार्थ के चलते, बड़े लोगों के चलते खबरों को तूल दिया जाता है- या इसका दूसरा कारण ये होता है कि मुट्ठी भर मीडिया के आला लोग इसकी दिशा-दशा तय कर देते हैं। आम आदमी की आवाज अब मीडिया से नहीं आती। चाहे वह आम लोगों के बीच कराया गया विस्फोट हो, या बिहार में बाढ़ से पीड़ित दाने दाने को मोहताज लोग हों। वे अब खबर नहीं बन रहे हैं।
संवेदनहीनता पर संवेदनशील कविता।
नहीं तनु जी नहीं...आवाज़ तो आती ही है....वगरना आप ये क्यूँ लिखतीं...किसलिए लिखतीं..??....हाँ अलबत्ता हम कुछ कर नहीं पाते...मगर करें भी क्या...बंदूकें लेकर घूमे....??खैर आपने लिखा अच्छा है...मन को छु गया..सच...!!
sach kahaa aapne....aur hamen bhi sach accha lagtaa hai....!!
बहुत अच्छी रचना है आपकी । भाव की प्रखर अिभव्यिक्त है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
shawendana jagane me aapki ye kavita sarahneey hai............
जिस दिन हमें यह आवाजें सुनाई देने लगेंगी, यह दुनिया बदल जायेगी!
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.... साधुवाद..
अच्छी रचना भावाभिप्ररित है..महसूस होती कविता का ज़िंदा धड़कती धड़कन सा अहसास दिलाते एक-एक शब्द और हांपती सांस अंत कविता में गहराई है घनापन है और साथ ही एक जवाब भी जो दिल में उठे कुच कहने के गुवार को शांत करता है। साधुवाद अपकी इस रचना के लिए।....
... लड़की हूं, इस घमंड के साथ जीने वाली साधारण सी लड़की ,,अच्छा है ! बहुत दिनों बाद अपना ब्लॉग खोला आपका कमेन्ट देखा और इधर आया !
its a painful truth. well written
Congrates
Avaneesh
आज मैंने आपकी चंद
रचनाएँ पढी....मुझे लगता है
सचमुच तपती रत में
तरु की छाँव भी है इनमें.
=======================
शेष फिर कभी
शुभ भावों सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
इसमे कोई राय नहीं, बहुत अच्छा लिखा है...
पर अपने कानो को कभी मरने ना देना...
कैसे करोगी किसी की मदद, जब किसी मजलूम की सिसकियाँ न सुन पाओगी...?
कैसे करोगी किसी मजबूर की मदद जब उसकी आह न सुन पाओगी..?
तुम्हें हर वो आवाज सुननी होगी जिसमे केवल दर्द छिपा है... सुननी होगी
क्योंकि...
कोई खासियत नहीं फिर भी खास, कोई ऊंचाई नहीं फिर भी आकाश। कोई खुशबु नहीं फिर भी अहसास, कोई बात नहीं फिर भी बकवास।
यही तो हो तुम
---मीत
तुमने बिल्कुल ठीक लिखा है तरु, अब लोगों को किसी भी प्रकार की आवाजें सुनाई नहीं देती। हम लोग बिल्कुल संवेदनहीन हो गए हैं, लेकिन क्या करें ये आवाजें इतनी ज्यादा और इतने लंबे समय से आ रही हैं कि चाहते हुए भी हम नहीं सुन पा रहे हैं.......!!!!!!!!!!!
पत्रकार लोग कितने कम समय में जीवन रंगों के कितने ज्यादा शेड देख लेते है ना ?
शेष शुभ.....
aapki ye rachana bahut acchi hai . aur man ko choo gayi hai .
desh mein is waqt jo ho raha hai uski suchak hai ye nazm.
aapko bahut bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
aapki ye rachana bahut acchi hai . aur man ko choo gayi hai .
desh mein is waqt jo ho raha hai uski suchak hai ye nazm.
aapko bahut bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
bahut sundar aur sach likha hai .. hardik badhai.. pahli baar aana hua shayad aaj aapke blog pe ab to aana jana laga rahega
New Post :- एहसास अनजाना सा.....
तरुणश्रीजी
हार्दिक बधाई सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये। आप देश हित मे अपनी अवाज उठाते रहे हमारी मगलकामनाऐ आपके साथ है।
तरु जी ,इस रचना के बारे में क्या लिखूं शब्द नही मिल रहे ,बस इतना कह सकता हूँ की ये सोचने पर मजबूर करती है !!!
सच कहा आपने! अब आवाजें ही नहीं आती, शब्द भी लगता है अंदर ही कहीं बैठ गए हैं.
aawaje aati bhi hai aur hun date bhi hain par in aawajon ko kaano tak pahunchana vbhi majboori hai..
badiya abhivyakti
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