वो हर दिन इसी आस में सोती और जागती थी कि जल्द ही उसे अपने जरूरत का काम मिल जाएगा। समय निकल रहा था और हिम्मत भी चुकती जा रही थी। लेकिन आस का कोना अभी रोशन था।
हर दिन भारी हो रहा था और वक्त की बेवफाई ने उसे कुंठा से संघर्ष करने के लिए भी कह दिया था। कई एहसास गुम

तभी दरवाजे पर कोई आहट हुई। फकीर जैसे द्वंद का एक्स रे कर चुका था।
बेटा, तेरा सारा काम बन जाएगा, गरीब की मदद कर।
शायद बात में जादू था, उसके हाथ से दो रुपए का सिक्का गिरकर, फकीर के कटोरे में खनखना उठा। ये वही हाथ थे जो कभी भीख मांगते लोगों को देखकर आगे जाने का इशारा करते थे। फकीर ने ढेरों दुआएं दीं, और असर जैसे उसी वक्त हुआ। मन शांत हो रहा था, खोई हिम्मत लौट रही थी और द्वंद खत्म। तत्काल बैग कंधे पर टांग वह बाहर निकल गई।
ये उसका रोज का काम था, अपने इर्द गिर्द के लोगों को देखकर जिंदगी का दर्शन गढ़ना और गाहे बगाहे अपनी परिस्थितियों से जोड़ कर उसे साबित करना। बस में बगल की सीट पर बैठी अधसोई सी महिला को देखकर उसने सोचा कि इन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने की कोई उत्सुकता नहीं। पास खड़े बुजुर्ग को देखकर लगा कि इनका सफर अभी भी जारी है, हार नहीं मानी इन्होंने। फिर तुरंत अपने जीवन से जोड़कर सोचने लगी, मेरी तरह शायद भगवान ने इनके जीवन में भी आराम नहीं बख्शा।
बस से उतरकर उसने फाइल को अपने हाथों में और मजबूती से दबा लिया, गोया ये उसके मंजिल तक पहुंचने का इकलौता सहारा हो। लिफ्ट में पांचवे फ्लोर का बटन दबा कर उसने अपने कपड़े और बाल ठीक किये और इंतज़ार करने लगी। कितनी आसानी से ऊंचाई चढ़ती है लिफ्ट और इसमें खड़े तमाम लोग...। क्या जिंदगी में ऊंचाईयां चढ़ने के लिेए कोई लिफ्ट नहीं होती?
वो इस उधेड़बुन में कई बार रही थी लेकिन ऐसी कोई लिफ्ट उसे अब तक नहीं मिल सकी थी, जिंदगी के सभी रास्ते उसने पगडंडियों से तय किए थे।
सामने की कुर्सी पर बैठा पैतालीस साल का अधेड़, उसके सी वी से ज्यादा उसकी तरफ देखने को आतुर था और वो चाहती थी कि उसके सी वी का एक एक शब्द पढ़ा जाए,उसकी मेरिट देखी जाए।
तो अपनी पसंद के बारे में बताएं।
सवाल में सवाल जैसा टोन नहीं,टोह लेने की उत्कंठा उसने भांप ली थी। खुद को सहज करते हुए जवाब दिया-
सर.... रीडिंग, म्यूज़िक, करंट अफेयर्स और डूब कर काम करना।
मिस वर्मा.... इस उम्र में तो डूबने के लिए कई चीज़ें हैं आपके पास....करंट अफेयर्स से दिलचस्पी हटाइए और अपने अफेयर में दिल लगाईए। नौकरी तो आसान सी चीज है....
अब तो बमुश्किल चिपकाई हुई मुस्कुराहट ने भी उसका साथ छोड़ दिया था। अपने स्त्रीत्व की इस लिफ्ट का एहसास उसे पहले भी कई बार कराया जा चुका है लेकिन दिल और दिमाग नाम के ऑपरेटिंग सिस्टम ने इसके उपयोग की इजाज़त कभी नहीं दी थी। हर बार की तरह आश्वासन का एक ढेला यहां भी उसे मिल चुका था और वो उसे ढोते हुए बाहर निकल आई।
लिफ्ट पांचवे फ्लोर से नीचे आ रही थी, नीचे का रास्ता उसे ऊपर आने के रास्तों से ज्यादा कठिन लग रहा था।
वो ऑफिस के बाहर खड़ी थी। ठंडी हवा बह रही थी लेकिन उसे धूप की चुभन का एहसास ज्यादा था। आज वो फिर इसी एहसास के साथ सोयेगी कि कल उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी।